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विवाह, तलाक और विरासत का सबके लिए समान नियम; उत्तराखंड UCC मसौदा केंद्रीय कानून का ब्लूप्रिंट?…

समान नागरिक संहिता (UCC) का मसौदा तैयार करने के लिए उत्तराखंड सरकार की ओर से गठित समिति ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को दस्तावेज सौंप दिए।

देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में 5 सदस्यीय समिति की अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने यूसीसी का मसौदा मुख्यमंत्री धामी को सौंपा।

UCC पर विधेयक पारित कराने के लिए 5 फरवरी से उत्तराखंड विधानसभा का चार दिन का विशेष सत्र बुलाया गया है।

विधानसभा में विधेयक के रूप में पेश करने से पहले मसौदे पर राज्य मंत्रिमंडल में भी चर्चा की जाएगी। यूसीसी राज्य में सभी नागरिकों को उनके धर्म से परे एकसमान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करेगा।

इसे यूसीसी पर केंद्रीय कानून के ब्लूप्रिंट के तौर पर भी देखा जा रहा है। अगर यह लागू होता है तो उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। 

00 पेज की यह मसौदा रिपोर्ट मुख्य तौर पर पैतृक संपत्तियों में महिलाओं के लिए समान अधिकार, गोद लेने, तलाक के समान अधिकार और धर्म की परवाह किए बिना बहुविवाह पर प्रतिबंध व लैंगिक समानता पर फोकस करती है। 

UCC समिति के सदस्य नाम न छापने की शर्त पर एचटी को बताया कि कमिटी ने लिव-इन रिलेशनशिप के लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन/सेल्फ डिक्लेरेशन फॉर्म भरने का सुझाव दिया है।

साथ ही समिति ने हलाला, इद्दत और तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने की मांग की है।

सभी धर्मों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल
समिति ने सुझाव दिया कि सभी धर्मों में लड़कियों की शादी करने की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़कों के लिए 21 वर्ष होनी चाहिए।

मालूम हो कि देश में विवाह की कानूनी उम्र पुरुषों के लिए 21 साल और महिलाओं के लिए 18 वर्ष ही है, मगर मुस्लिम पर्सनल लॉ किसी भी यौवन प्राप्त लड़की की शादी को वैध करार देता है।

मालूम हो कि 2021 में केंद्र सरकार ने सभी धर्मों में आयु सीमा में सामंजस्य बनाने के लिए महिलाओं की विवाह की उम्र बढ़ाने को लेकर विधेयक पेश किया था, लेकिन बाद में इसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया।

UCC से किन लोगों को मिलेगी छूट 
यूसीसी मसौदा रिपोर्ट में नोटिफाइड अनुसूचित जनजातियों को इसके दायरे से छूट देने का सुझाव दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान से उन्हें विशेष दर्जा मिला हुआ है। मालूम हो कि उत्तराखंड की कुल आबादी में 2.89% अनुसूचित जनजाति के लोग हैं।

भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी और थारू सहित कुल 5 अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों के लोग राज्य में रहते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग यूएस नगर, देहरादून, पिथौरागढ़ और चमोली जिलों में रहते हैं।

जौनसारी आदिवासी तो खुद को पांडवों के वंशज बताते हैं। उनका दावा है कि राज्य में खेती के लिए सीमित जमीन होने के चलते बहुपतित्व ने उन्हें पैतृक भूमि और संपत्तियों को बनाए रखने में मदद की।

जनसंख्या नियंत्रण पर कोई बात नहीं
इस रिपोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कुछ नहीं कहा गया है। एक सदस्य ने कहा, ‘इसमें जनसंख्या नियंत्रण पर कोई बात नहीं की गई है।

दरअसल, केंद्र सरकार ने जनसंख्या वृद्धि की चुनौतियों को समझने के लिए पहले ही एक समिति बनाई हुई है।’ उन्होंने कहा कि उत्तराखंड यूसीसी विधेयक को केंद्रीय कानून के लिए टेम्पलेट के तौर पर देखा जा सकता है।

वहीं, गोद लेने पर समान अधिकार की बात कही गई है। इसके लिए किशोर न्याय अधिनियम के नियमों का पालन जरूरी बताया गया है।

बता दें कि इस्लामिक कानून में गोद लेने को मान्यता नहीं दी जाती है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के अनुसार, कोई भी योग्य माता-पिता… चाहे वे किसी भी धर्म के हों, बच्चा गोद ले सकते हैं।

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