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ईरान-इजरायल, रूस-यूक्रेन जंग बाइडन के लिए कितना बड़ा संकट, कैसे हो सकता है चुनाव प्रभावित…

जब अमेरिकी विदेश नीति के बारे में बड़े सवाल चुनाव से टकराते हैं, तो यह एक मौजूदा राष्ट्रपति के लिए शायद ही अच्छी खबर होती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के समक्ष भी कुछ मुद्दे आये, जैसे रूस का यूक्रेन पर आक्रमण। बाइडन से पहले उनके जैसे अन्य नेताओं के समक्ष भी कुछ मुद्दे आये थे, जैसे अफगानिस्तान से वापसी।

इसके साथ ही गाजा के खिलाफ इजराइल की जवाबी कार्रवाई और ईरान की भूमिका भी कुछ अन्य मुद्दे हैं।

जब अमेरिकी विदेश नीति के बारे में बड़े सवाल चुनाव से टकराते हैं, तो यह एक मौजूदा राष्ट्रपति के लिए शायद ही अच्छी खबर होती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के समक्ष भी कुछ मुद्दे आये, जैसे रूस का यूक्रेन पर आक्रमण। बाइडन से पहले उनके जैसे अन्य नेताओं के समक्ष भी कुछ मुद्दे आये थे, जैसे अफगानिस्तान से वापसी।

इसके साथ ही गाजा के खिलाफ इजराइल की जवाबी कार्रवाई और ईरान की भूमिका भी कुछ अन्य मुद्दे हैं।

मतदाता की मंशा का अनुमान लगाना अत्यंत कठिन है, विशेषकर ऐसे जब चुनाव का दिन अभी दूर है।

हालांकि चुनावों में मतदाताओं के इरादे पर अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रभाव के इतिहास पर एक नज़र डालने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि अमेरिकी, दुनिया में अपनी भूमिका के बारे में कैसे सोचते हैं और इस बार उनके नेता की पसंद पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।

वियतनाम युद्ध के मुद्दे की तरह, आज की डेमोक्रेटिक पार्टी गाजा पर बाइडन प्रशासन की प्रतिक्रिया पर विभाजन से जूझ रही है।

ईरान मुद्दे ने भी पिछले अमेरिकी चुनावों में बड़ी भूमिका निभायी है। पिछले सप्ताह की घटनाओं को देखते हुए, यह मुद्दा फिर से ऐसा कर सकता है।

वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति और उसके बाद ईरानी बंधक संकट से निपटने में लापरवाही ने तत्कालीन डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जिमी कार्टर को आधुनिक अमेरिकी इतिहास की सबसे अपमानजनक हार दी थी।

वर्ष 1980 के चुनाव से एक साल पहले और ईरानी क्रांति के बीच में उग्रवादी छात्रों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और 50 से अधिक अमेरिकियों को बंधक बना लिया था। यह संकट एक वर्ष से अधिक समय तक खिंचा, असहाय अमेरिकी अधिकारी इसे देखते रहे।

दिसंबर 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ आक्रमण ने कार्टर की स्थिति अत्यंत कमजोर कर दी। उनके रिपब्लिकन प्रतिद्धंद्वी रोनाल्ड रीगन ने “अमेरिका को फिर से महान बनाने” का वादा करते हुए कार्टर की कमजोरियों का सफलतापूर्वक फायदा उठाया।

कार्टर हार गए और रीगन के शपथग्रहण के दिन बंधकों को रिहा कर दिया गया।

वह समय कोई संयोग नहीं था। कार्टर की परोक्ष कमजोरी के बारे में पारंपरिक टिप्पणी अक्सर इस बात पर ध्यान देने में विफल रहती है कि असफल बचाव प्रयास के बाद कार्टर प्रशासन राष्ट्रपति के अंतिम दिन तक ईरान के साथ लंबी बातचीत में लगा रहा।

यह वह वार्ता थी जिसके परिणामस्वरूप अंततः बंधकों को रिहा करने का समझौता हुआ। संकट के समाधान में रीगन के प्रचार की भूमिका के बारे में सवाल बने हुए हैं।

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