Punjab News18

punjabnews18.com

देश

भगवान राम ने प्रायश्चित के लिए रघुनाथ मंदिर में की थी तपस्या, 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने की स्थापना…

भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए देवप्रयाग में तपस्या की थी।

उसी स्थान पर बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने रघुनाथ मंदिर की स्थापना कराई। देवप्रयाग के प्राचीन रघुनाथ मंदिर का उल्लेख न केवल केदारखंड में मिलता है।

बल्कि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में इसका उल्लेख किया है।

मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल के प्राचीन पंवार शासकों के कई पुराने ताम्र पत्रों में भी मंदिर का उल्लेख है।

इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा कनकपाल के पुत्र के गुरु शंकर ने काष्ठ का प्रयोग कर मंदिर शिखर का निर्माण करवाया।

गुरु शंकर और आदि गुरु शंकराचार्य का काल आठवीं सदी का है। उस काल में मंदिर का शिखर परिवर्तित होने के कारण मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण शंकराचार्य ने कराया। 

केदारखंड में उल्लेख है कि त्रेता युग में ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति के लिए श्रीराम ने देवप्रयाग में तप किया और विश्वेश्वर शिवलिंगम की स्थापना की।

मंदिर परिक्रमा में चट्टान पर प्रथम सदी के ब्राहमीलिपि में खुदे 19 नाम और माहापाषण कालीन शिला वृत इसकी प्राचीनता को दिखाते हैं।

मंदिर का सिंहद्वार ढोका गोरखा शासन का निर्मित है। कैत्यूर शैली में बने रघुनाथ मंदिर में मंडप, महामंडल, गर्भगृह व शिखर पर आमलक बना है।

पौष के महीने होती है महापूजा: केदारखंड के अनुसार सतयुग में देवशर्मा मुनि के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता युग में राम बनकर देवप्रयाग आने का वर दिया था। पौष माह सूर्योदय से पहले यहां भगवान राम को समर्पित महापूजा होती है।

बदरीनाथ धाम तीर्थ पुरोहित समाज यहां के पुजारी हैं। संगम से रघुनाथ मंदिर तक आने वाली 101 सीढियों पर राम नाम जपते हुए पहुंचने का विधान है।

ग्रेनाइट पर है भगवान की प्रतिमा: रघुनाथ मंदिर के चारों ओर मंदिर परिसर में भगवान गणेश, आदि बदरी, मां अन्नपूर्णा, भगवती, चन्द्रेश्वेर महादेव, हनुमान, भैरव क्षेत्रपाल आदि के मंदिर हैं। केंद्रीय मंदिर में रघुनाथ की प्रतिमा है।

जो खड़ी मुद्रा में एक ग्रेनाइट प्रतिमा है। इसकी ऊंचाई करीब साढ़े छह फीट है। केंद्रीय मंदिर में एक देउला है जो गर्भगृह के ऊपर शंक्वाकार छत है।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *