Punjab News18

punjabnews18.com

देश

गाड़ी में सिर्फ 5 लीटर तेल, जब पत्रकारों के लिए कर्पूरी ठाकुर ने बरामदे में बैठे लोगों से मांग लिया था चंदा …

बात 1980 के आसपास की है। कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री पद से हट चुके थे।

अब वो विपक्ष के नेता थे। उन दिनों बिहार में जातीय संघर्ष बढ़ रहे थे। रोहतास में कई छोटी जातियों और उच्च जाति के दबंगों के बीच संघर्ष काफी बढ़ गया था।

जातीय हिंसा, खून-खराबा होने लगे थे। इस वजह से उस वक्त रोहतास को बिहार का चंबल भी कहा जाने लगा था। मोहन बिन्द उस इलाके का एक बड़ा दस्यु सरगना था। उसका आतंक बढ़ रहा था। इधर, पुलिस पर कार्रवाई का दबाव भी बढ़ गया था।

इसी बीच, पुलिस ने बिन्द गिरोह के बारे में पूछताछ करने के दौरान करुआ गांव में तीन हरिजनों को घोड़े की टाप से कुचलकर मार डाला था। पुलिस उत्पीड़न की वारदात की सूचना पटना में कर्पूरी ठाकुर को मिल गई थी।

इसके बाद उन्होंने रात में ही दो पत्रकारों को फोन करवाकर अगली सुबह अपने आवास पर बुलाया था। इनमें एक थे नवभारत टाइम्स के अरुण रंजन और दूसरे अंग्रेजी पत्रकार अरुण सिन्हा।

कर्पूरी ठाकुर पुलिस उत्पीड़न की घटना का कवरेज दो बड़े अखबारों में करवाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने दोनों वरिष्ठ पत्रकारों को बुलवाया था।

सुबह जब दोनों पत्रकार कर्पूरी ठाकुर के आवास पर पहुंचे तो वहां एक खटारा टैक्सी खड़ी थी।

तुरंत ही कर्पूरी ठाकुर ने दोनों पत्रकारों से बातचीत किया और उन्हें उसी खटारा टैक्सी से रोहतास के लिए रवाना करना चाहा, तभी ड्राइवर से पूछा कि गाड़ी में कितना तेल है।

इस पर ड्राइवर ने कहा- पांच लीटर। कर्पूरी ठाकुर ने तुरंत अनुमान लगाया कि सवा दो सौ किलोमीटर की दूरी के लिए सिर्फ पांच लीटर तेल बहुत कम है।

उन्होंने तब तुरंत अपने ही बरामदे में बैठे लोगों से चंदा मांग लिया और उससे जमा हुए पैसे को ड्राइवर को दे दिया। कर्पूरी ठाकुर ने तब कहा, आप लोग बढ़िए, पीछे से आता हूं।

जब पत्रकार गांव पहुंचे तो देखा कि पुलिस और दबंगों ने कई दलित परिवारों के घरों के छप्पड़ उखाड़ दिए हैं।

गांव के अधिकांश महिलाओं और पुरुषों के हाथ-पांव फुले हुए थे, जो भयंकर मारपीट की कहानी बयां कर रहे थे लेकिन उनमें से एक भी अपना मुंह नहीं खोल रहे थे। मुसहर टोली की तीन विधवाएं खूब रो रही थीं।

अरुण रंजन ने कर्पूरी ठाकुर की मौत के बाद एक संस्मरण में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब हमलोग उस गांव से लौटने लगे तभी गांव में हल्ला हुआ कर्पूरी जी आ गए, कर्पूरी जी आ गए। कर्पूरी जी ने हमलोगों को गांव में देखते ही तुरंत वहां से निकल जाने को कहा था।

रंजन ने लिखा है कि जो लोग चुप्पी साधे हुए थे, वही लोग ठाकुर को देखकर दहाड़ मारकर रोने लगे थे और उन्हें आपबीती सुना रहे थे।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *