नई दिल्ली । 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आदेश मिला और नरेंद्र मोदी अचानक गुजरात के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन अगले वर्ष ही विधानसभा चुनाव हुआ। 2002 में पहली बार मोदी को गुजरात विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की अगुवानी करनी थी। बीजेपी 182 सीटों की विधानसभा में 49.85 प्रतिशत वोटों के साथ 127 सीटें जीत गई। मोदी स्पष्ट बहुमत के साथ फिर सत्ता में लौंटे। तब से बहुमत सरकारों का नेतृत्व करने का उनका सिलसिला बढ़ता रहा। 2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा में लगातार दूसरी और तीसरी बार बहुमत की सरकार बनाने के बाद मोदी केंद्र की राजनीति में आए और वहीं जलवा बरकरार रखा।
2014 में बहुमत के आंकड़े से 10 ज्यादा 282 सीटें लाकर केंद्र में पहली बार सरकार बनाई और प्रधानमंत्री बन गए। 2019 में मोदी का करिश्मा सिर चढ़कर बोला बीजेपी के खाते में 21 सीटें और बढ़ गईं। 10 सालों में विकास, कल्याणकारी योजनाओं और अनुकूल जातीय समीकरण सहित अन्य कई मजबूत मोर्चों की बदौलत बीजेपी ने 2024 के चुनावों में अबकी बार 400 पार का नारा दिया, लेकिन 4 जून को परिणाम आए तब 2002 से गुजरात से शुरू हुआ सिलसिला टूट गया। मोदी के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी बीजेपी पहली बार बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई। 240 सीटों पर सिमटी बीजेपी और मोदी को नई सरकार बनाने के लिए बैशाखी का सहारा लेने की नौबत आ गई है। यह नरेंद्र मोदी के लिए अग्निपथ पर चलने जैसा है। यह पथ जितना ज्यादा से ज्यादा आसान हो सके, इसकी कवायद हो रही है।
दरअसल, 9 जून को नई मोदी कैबिनेट शपथ ग्रहण करेगी। सहयोगी दलों को सरकार में शामिल करने का फॉर्म्युला भी सामने आ चुका है। बताया जा रहा हैं एनडीए की नई सरकार में साथी दलों के हर चार सांसद पर एक मंत्री बनाया जाएगा। सभी दलों के सहयोग से टिकाऊ सरकार बने, इसकी कवायद चल रही है। भाजपा के शीर्ष नेता गुरुवार को इसी चर्चा में लगे रहे और वरिष्ठ पार्टी नेताओं को सहयोगी दलों से बात करने के लिए तैनात किया गया। बीजेपी चीफ जेपी नड्डा के आवास पर कई बैठकें हुईं।
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